शनिवार, 24 जनवरी 2009

भ्रम

एक से दीखते सरे चहरे , मटमैली चादर ओढे चलते है काट दिए सभी तरु घनेरे ,तपती राहों मेअब इंसानी तलुए जलते है पूनम चन्द्रिका त्यागी

3 टिप्‍पणियां:

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत सुंदर...आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है.....आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे .....हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

खूबसूरत तरीके से बयान किया है जज्बातों को.........दो लाइनों में बड़ी बात
बहुत खूब

Vivek Ranjan Shrivastava ने कहा…

दरअसल हर कृतिकार के मन में एक कैमरा होता है जो वह सब देखकर कैद कर लेता है जेहन में , जिसे लोग अनदेखा कर देते हैं . आप तो एक साथ ही शब्द और चित्र में मुखरित कर रही है अपने उसी कैमरे में संजोई हुई अनुभूतियाँ . बधाई व स्वागत

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suniye

mere rachna sansaar main aap ka swaaget hai

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vyakt karna aur mehesoos karna yhi caahat kisi ko kavi lekhak ya chitrkaar benati hi