शनिवार, 31 जनवरी 2009


शांत झील मे तिरता पत्ता नीद सुखद सी सोता है , आते है जब बदल घिर घिर सारा अम्बर रोता है , उठती है जो लहर झील मे दर्प से वो इठलाती है जाऊँ अंतस मे सागर झूम झूम कर गाती है , झील मे स्थिर जल सतह को मंद पवन सिहरती है ,इस सिहरन की आहट उस पत्ते तक भी आती है ,विरहासिक्त आकुल मन पत्ता ,शरण झील की पाता है ,और दबी पानी की भाषा मे जलगीत झील का गाता है /

कोई टिप्पणी नहीं:

मेरे बारे में

sumvaad

sumvaad
sumvaad

http:sumvaad.com

Powered By Blogger

suniye

mere rachna sansaar main aap ka swaaget hai

kahne aur sunne ki cahat

vyakt karna aur mehesoos karna yhi caahat kisi ko kavi lekhak ya chitrkaar benati hi